रथ चला, मन चला – विश्वास की दिशा में”
रथ यात्रा सिर्फ भगवान का बाहर आना नहीं है,
ये हमारे भीतर के रथ को भी चलाने का न्योता है।
आषाढ़ी बीज भी बस एक मौसम नहीं,
ये नए कर्मों, नए इरादों और नए बीजों की बोवाई का प्रतीक है —
चाहे वो ज़मीन में हो या दिल में।
Shayari
"रथ निकला मंदिर की सीमा से बाहर,
जैसे विश्वास निकले डर की दीवार।
हर पहिया कहता है – चल पड़ अब तू,
भगवान भी साथ हैं, क्या सोचता है तू?"
🌱
"बीज बोया आज सिर्फ़ मिट्टी में नहीं,
इच्छाओं की ज़मीन में भी उम्मीदों की नमी।
आषाढ़ आई है एक नई सोच के साथ,
हर किसान अब ख़्वाब बोता है हाथों में बात।"
🪔
कभी-कभी भगवान खुद हमें बाहर बुलाते हैं,
तो कभी मौसम हमें भीतर झाँकने को मजबूर करता है।
आज का दिन है —
चलने का, बोने का, और भरोसे के साथ जीवन को आगे बढ़ाने का।
No comments:
Post a Comment