“चलो चलें जगन्नाथ के साथ – नई राह, नई शुरुआत”
आज का दिन सिर्फ एक त्योहार नहीं,
ये है भक्ति और प्रकृति की संगम रेखा।
जहाँ एक ओर भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के साथ यात्रा पर निकलते हैं,
वहीं दूसरी ओर आषाढ़ी बीज हमें नई शुरुआत, उम्मीद और मेहनत की प्रेरणा देता है।
"जब रथ की घंटियाँ गूंजती हैं हवा में,
भक्ति की लहर उठती है दुआओं की दवा में।
जगन्नाथ जब मुस्कुराते हैं रथ पर बैठकर,
लगता है जैसे दुख भी थम जाता है सहकर।"
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"बीज बोया है दिल से आषाढ़ की धरती में,
हर पसीने की बूँद छिपी है एक उम्मीद की स्याही में।
अब आसमान से बरसना है बस थोड़ी सी दुआ,
बाकी सब मेहनत ने पहले ही लिख दी है कथा।"
हर रथयात्रा एक याद है — कि ईश्वर खुद चल पड़ते हैं हमारी ओर,
और हर आषाढ़ी बीज एक वादा है — कि मेहनत कभी खाली नहीं जाती।
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