जहाँ रथ रुके, वहाँ रुक जाए बेचैनी
आज जगन्नाथ रथ यात्रा है — वो पल जब ईश्वर खुद रास्तों पर उतरते हैं,
और हर मोड़ पर हमें यह अहसास दिलाते हैं कि
हम अकेले नहीं चल रहे हैं।
साथ ही आषाढ़ी बीज है — किसान की उम्मीद, मेहनत और भरोसे का पहला कदम।
दोनों मिलकर कहते हैं:
"चलो... विश्वास के साथ एक नया अध्याय शुरू करें।"
Shayari
"जहाँ रथ रुके, वहाँ रुक जाए बेचैनी,
जहाँ ईश्वर मुस्कुराएँ, वहीं मिट जाए रुसवाई।
हर पहिया घुमे, लेकर साथ दुआओं की धड़कन,
जगन्नाथ चले, और चले हर दिल की उलझन।"
🌾
"बीज गिरा आज सिर्फ़ ज़मीन पर नहीं,
गिरा है हर दिल में, हर टूटे यकीन पर कहीं।
आषाढ़ आई है एक नई रोशनी की कसम से,
अब उदासी नहीं उगेगी, बस खुशहाली मौसम से।"
🪔
इस दुनिया में कुछ रथ बाहर चलते हैं,
कुछ भीतर भी चलना चाहते हैं।
आज दोनों की सुनो —
प्रकृति और परमात्मा —
दोनों आपको कह रहे हैं:
"अब समय है... चलने का।"
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